Kalyug hai saheb sabkuchh bikta hai

कलयुग हैं साहेब सबकुछ बिकता हैं 

कवियों ने प्रेमचंद की कलम बेच दी
नेताओ ने गाँधी की कसम बेच दी 
इस दुनिया में क्या क्या नहीं बिका यारों 
लोगो ने आँखों की शर्म बेच दी 
Kalyug hai saheb

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