Bina jalaye khun apne jism ka

Bina jalaye khun apne jism ka

होंगे फूल बहारों में कई ,
मगर खुशबु हवाओ में गुलाब सा ,
क्या कोई बिखर पाया हैं ,
माना की होंगे मुसीबत राहों में तुम्हारे कई ,
मगर बिन जलाये खून अपने जिस्म का 
क्या कोई कभी निखार पाया हैं 

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