Mohabbat ke jis gali se bhi gujra hu

मोहब्बत के जिस गली से भी गुजरा हूँ


जब जब मुदतो में सर झुका हैं हमारा 
तब तब काफिलों में  ऊँचा खुद का जमीर पाया है ,
हल ऐ मोहब्बत अब क्या बया करू मैं अपनी ,
मोहब्बत के जिस गली से भी गुजरा हूँ,
हर पल वहाँ खुद को आमिर पाया हूँ 
-------Mohabbat Shayari-------

No comments

Theme images by saw. Powered by Blogger.